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यमक अलंकार की परिभाषा / यमक अलंकार के भेद

Posted on October 15, 2023March 17, 2024 By Nidhi Academy No Comments on यमक अलंकार की परिभाषा / यमक अलंकार के भेद

 

                   यमक अलंकार 

यमक अलंकार की परिभाषा-

जब किसी काव्य (कविता) में कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयोग में आया हो, किंतु हर बार उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।

जैसे- कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।

 या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय। 

यहाँ कनक शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है, लेकिन एक कनक का अर्थ है ‘सोना’ और दूसरे कनक का अर्थ है ‘धतूरा’।

यमक अलंकार के भेद-

यमक अलंकार के दो भेद होते हैं-  अभंग पद यमक, सभंग पद यमक

1- अभंग पद यमक अलंकार- जब किसी भी शब्द को बिना तोड़े-मरोड़े यमक अलंकार उत्पन्न किया जाता है, तो वहां पर अभंग पद यमक माना जाता है।

 

केकी रव की नूपुर ध्वनि सुन। जगती जगती की मूक प्यास।।

(जगती शब्द की आवृति दो बार हुई है, प्रथम जगती का अर्थ है- जगाना और द्वितीय जगती का अर्थ है- संसार।)

जेते तुम तारे तेत नभ में न तारे हैं। (इस पंक्ति में तारे शब्द की आवृति दो बार हुई है, प्रथम तारे का अर्थ है- उद्धार करना और द्वितीय तारे का अर्थ है- ग्रह-नक्षत्रगण।) 

कहै कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लींनी।

( यहाँ ‘बेनी’ शब्द की आवृति दो बार हुई है, एक बेनी का अर्थ कवि का नाम है और दूसरी बेनी का अर्थ चोटी है।)

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।

कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।।

(यहाँ ‘मनका’ शब्द की आवृति दो बार हुई है, प्रथम मनका का अर्थ है- मोती की माला और द्वितीय मनका का अर्थ है- मन का स्वभाव।) 

किसी सोच में हो विभोर साँसे कुछ ठंडी खींची।

फिर झट गुलकर दिया दिया को दोनों आँखे मीचि।।

(यहाँ ‘दिया’ शब्द की आवृति दो बार हुई है, इसमें एक दिया का अर्थ ‘कर देना’ और दूसरे दिया का अर्थ दीपक है।)

 

तीर बेर खाती थी, वो तीर बेर खाती थी।

(यहाँ ‘बेर’ शब्द की आवृति दो बार हुई है, इसमें एक ‘बेर’ का अर्थ ‘बार/दफा’ और दूसरे ‘बेर’ का अर्थ ‘बेर नामक फल’ है।)

सजना है मुझे सजना के लिए। (सजना शब्द के दो अर्थ हैं- प्रियतम और सँवरना) 

हरि हरि रूप दियो नारद को। (हरि शब्द के दो अर्थ हैं- विष्णु और वानर) 

 

सारंग ने सारंग गह्यौ, सारंग बोल्यो आय।

जे सारंग ते सारंग कहे , सारंग निकस्यो जाय।

(यहाँ सारंग शब्द के तीन अर्थ हैं- मोर, सर्प, बादल। जैसे ही मोर ने सर्प को पकड़ा, तभी बादल घिर आया, अब यदि मोर बादल को देखकर कुहक ने लगे तो सर्प उसके हाथ से निकल जाएगा।)

आँख लगती जब है, तब आँख लगती ही नाहीं। (यहाँ ‘आँख लगने’ के दो अर्थ हैं- प्रेम होना तथा नींद आना।)

खग कूल कूल-कूल-सा बोल रहा है।

रती-रती सोभा सब रती के सरीर के– इस वाक्य में रती (शरीर) व दूसरे रती (सुंदरता) और तीसरे रती का मतलब (अप्सरा) है।

ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी। ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती है।

 इस पंक्ति में ‘ऊँचे घोर मंदर’ शब्दों की आवृति दो बार हुई है। प्रथम इसका अर्थ है- ऊँचे घर की तथा दूसरा अर्थ है- ऊँचे पर्वतों की गुफाओ में। इस पंक्ति का अर्थ है कि ऊँचे घर में रहने वाली नारियांे ने ऊँचे घर छोड़ दिए हैं, अब वे ऊँचे पर्वतों की गुफाओ में रहने लगीं हैं।

 “वह बांसुरी की धुनि कानि परै कुल कानि हियो तजि भजति है।”

हेरी हीयो जु लिया हरि जे हरि।

( हरि का अर्थ है – कृष्ण , चुराना )

 “कबिरा सोई पीर है , जे जाने पर पीर , जे पर पीर न जानई , सो काफिर बेपीर।”

“सुर – सुर तुलसी ससि उडगन केशवदास , और कवी खद्योत सम जहँ – तहँ करे प्रकास।”

 काली घटा का घमंड घटा।  (प्रथम शब्द ‘घटा’ का अर्थ है- बादल तथा दूसरे शब्द ‘घटा’ का अर्थ है- कम होना ) 

2- सभंग पद यमक अलंकार-  जिस काव्य में जोड़-तोड़ करके यमक अलंकार की उत्पत्ति की जाए, वहां पर सभंग पद यमक आता है।

पास ही रे हीरे की खान, खोजता कहां और नादान– इस वाक्य में ही रे (होना) और दूसरे हीरे का मतलब आभूषण है और यहां निकट ही हीरे की खान है फिर भी लोग भटकते हैं का मतलब है।

तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के- (प्रथम ‘बरछी ने’ का अर्थ है- तलवार ने तथा द्वितीय ‘बर छीने’ का अर्थ है- सुहाग छीने हैं।)

अलंकार, इकाई 6, यमक अलंकार, सामान्य हिंदी

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