जो शब्द लिंग, वचन, कारक, काल से अप्रभावित (कोई परिवर्तन नहीं होता) रहते हैं, उन्हें अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं- क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक।
प्रत्येक भाषा की अपनी ध्वनि-व्यवस्था, शब्द रचना एवं वाक्य का निश्चित संरचनात्मक ढाँचा तथा एक सुनिश्चित अर्थ प्रणाली होती है। भाषा की सबसे छोटी और सार्थक इकाई ‘शब्द’ है। ध्वनि-समूहों की ऐसी रचना जिसका कोई अर्थ निकलता हो उसे शब्द कहते हैं।
परिभाषा “एक या एक से अधिक वर्षों से बने सार्थक ध्वनि समूह को शब्द कहते हैं।”
शब्द के भेद-हिंदी भाषा जहाँ अपनी जननी संस्कृत भाषा के समृद्ध शब्द भण्डार से प्राप्त परंपरागत विकास के मार्ग पर बढ़ी, वहीं इसने अनेक भाषाओं के संपर्क से प्राप्त शब्दों से भी अपने शब्द-भंडार में वृद्धि की है। साथ ही नये भावों, विचारों, व्यापारों की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यकतानुसार नये शब्दों की रचना भी पूरी उदारता एवं तत्परता से की गई है। इस प्रकार हिंदी की शब्द-संपदा न केवल विपुल है बल्कि विविधतापूर्ण भी हो गई है।
शब्द की उत्पत्ति, रचना, प्रयोग एवं अर्थ के आधार पर शब्द के भेद किए गए हैं। जिनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है-
(क) उत्पत्ति के आधार पर हिंदी भाषा में संस्कृत, विदेशी भाषाओं, बोलियों एवं स्थानीय संपर्क भाषा के आधार पर निर्मित शब्द शामिल हैं। अतः उत्पत्ति या स्त्रोत के आधार पर हिंदी भाषा के शब्दों को निम्नांकित उपभेदों में बाँटा गया है-
(i) तत्सम-तत् + सम का अर्थ है-उसके समान। अर्थात् किसी भाषा में प्रयुक्त उसकी मूल भाषा के शब्दों को तत्सम कहते हैं। हिंदी की मूल भाषा संस्कृत है। अतः संस्कृत के वे शब्द जो हिंदी में ज्यों के त्यों प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं, जैसे-अट्टालिका, उष्ट्र, कर्ण, चंद्र, अग्नि, आम्र, गर्दभ, क्षेत्र आदि।
(ii) तद्भव शब्द-संस्कृत भाषा के वे शब्द, जिनका हिंदी में रूप परिवर्तित कर, उच्चारण की सुविधानुसार प्रयुक्त किया जाने लगा, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं, जैसे-अटारी, ऊँट, कान, चाँद, आग, आम, गधा, खेत आदि।
(iii) देशज शब्द-किसी भाषा में प्रयुक्त ऐसे क्षेत्रीय शब्द जिनके स्रोत का आधार या तो भाषा- व्यवहार हो या उसका कोई पता नहीं हो, देशज शब्द कहलाते हैं। समय, परिस्थिति एवं आवश्यकतानुसार क्षेत्रीय लोगों द्वारा जो शब्द गढ़ लिए जाते हैं, उन्हें देशज शब्द कहते हैं, जैसे-परात, काच, ढोर, खचाखच, फटाफट, मुक्का आदि।
देशज शब्दों के भेद इस प्रकार हैं-
(अ) अपनी गढ़ंत से बने शब्द अपने अंतर्मन में उमड़ रही भावनाओं यथा-खुशी, गम अथवा क्रोध की अभिव्यक्ति करने के लिए व्यक्ति अति भावावेश में कुछ मनगढ़ंत ध्वनियों का उच्चारण करने लगता है और यही ध्वनियाँ जब बार-बार प्रयोग में आती हैं तो एक बड़ा जन समुदाय उनका प्रयोग करने लगता है और धीरे-धीरे उनका प्रयोग साहित्य में भी होने लगता है, जैसे-ऊधम, अंगोछा, खुरपा, ढोर, लपलपाना, बुद्ध, लोटा, परात, चुटकी, चाट, ठठेरा, खटपट आदि।
(आ) द्रविड़ भाषा से आए देशज शब्द-अनल, कटी, चिकना, ताला, लूँगी, इडली, डोसा आदि।
(इ) कोल, संथाल आदि से आए शब्द-कपास, कोड़ी, पान, परवल, बाजरा, सरसों आदि।
(iv) विदेशी शब्द-राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक कारणों से किसी भाषा में अन्य देशों की भाषाओं के भी शब्द आ जाते हैं, उन्हें विदेशी शब्द कहते हैं। हिंदी में अँगरेजी, फारसी, पुर्तगाली, तुर्की, फ्रांसीसी, चीनी, डच, जर्मनी, रूसी, जापानी, तिब्बती, यूनानी भाषा के शब्द प्रयुक्त होते हैं।
(अ) अँगरेजी भाषा के शब्द जो प्रायः हिंदी में प्रयुक्त होते हैं-अफसर, एजेण्ट, क्लास, क्लर्क, नर्स, कार, कॉपी, कोट, गार्ड, चैक, टेलर, टीचर, ट्रक, टैक्सी, स्कूल, पैन, पेपर, बस, रेडियो, रजिस्टर, रेल, रेडीमेड, शर्ट, सूट, स्वेटर, टिकट आदि।
(आ) अरबी भाषा के शब्द-अक्ल, अदालत, आजाद, इंतजार, इनाम, इलाज, इस्तीफा, कमाल, कब्जा, कानून, कुर्सी, किताब, किस्मत, कबीला, कीमत, जनाब, जलसा, जिला, तहसील, नशा, तारीख, ताकत, तमाशा, दुनिया, दौलत, नतीजा, फकीर, फैसला, बहस, मदद, मतलब, लिफाफा, हलवाई, हुक्म, हिम्मत आदि।
(इ) फ़ारसी के शब्द- अख़बार, अमरूद, आराम, आवारा, आसमान, आतिशबाजी, आमदनी, कमर, कारीगर, कुश्ती, खजाना, खर्च, खून, गुलाब, गुब्बारा, जानवर, जेब, जगह, जमीन, दवा, जलेबी, जुकाम, तनख्वाह, तबाह, दर्जी, दीवार, नमक, बीमार, नेक, मजदूर, लगाम, शेर, सूखा, सौदागर, सुल्तान, सुल्फा आदि।
(ई) पुर्तगाली भाषा से अचार, अगस्त, आलपिन, आलू, आया, अनन्नास, इस्पात, कनस्तर, कारबन, कमीज, कमरा, गोभी, गोदाम, गमला, चाबी, पीपा, पादरी, फीता, बस्ता, बटन, बाल्टी, पपीता, पतलून, मेज, लबादा, संतरा, साबुन आदि।
(उ) तुर्की भाषा से-आका, उर्दू, काबू, कैंची, कुर्की, कुली, कलंगी, कालीन, चाक, चिक, चेचक, चुगली, चोगा, चम्मच, तमगा, तमाशा, तोप, बारूद, बावर्ची, बीबी, बेगम, बहादुर, मुगल, लाश, सराय आदि।
(ऊ) फ्रेन्च (फ्रांसीसी) से अंग्रेज, काजू, कारतूस, कूपन, टेबुल, मेयर, मार्शल, मीनू, रेस्ट्रां, सूप
आदि।
(ए) चीनी से चाय, लीची, लोकाट, तूफान आदि।
(ऐ) डच से-तुरुप, चिड़िया, ड्रिल आदि।
(ओ) जर्मनी से-नात्सी, नाजीवाद, किंडरगार्टन आदि।
(औं) तिब्बती से लामा, डांडी।
(अं) रूसी से जार, सोवियत, रूबल, स्पूतनिक, बुजुर्ग, लूना आदि।
(अ) यूनानी से एकेडमी, एटम, एटलस, टेलिफोन, बाइबिल आदि।
(v) संकर शब्द-हिंदी में वे शब्द जो दो अलग-अलग भाषाओं के शब्दों को मिलाकर बना लिए गए हैं, संकर शब्द कहलाते हैं, जैसे-
वर्षगाँठ वर्ष (संस्कृत) + गाँठ (हिंदी)
उद्योगपति उद्योग (संस्कृत) पति (हिंदी) –
रेलयात्री रेल (अँगरेजी) + यात्री (संस्कृत) –
टिकिटघर टिकिट (अँगरेजी) घर (हिंदी)
नेकनीयत नेक (फ़ारसी) – नीयत (अरबी)
जाँचकर्ता जाँच (फ़ारसी) कर्ता (हिंदी)
बेढंगा बे (फ़ारसी) + ढंगा (हिंदी)
बेआब बे (फ़ारसी) आब (अरबी)
सजा प्राप्त सजा (फ़ारसी) + प्राप्त (हिंदी)
उड़नतश्तरी उड़न (हिंदी) + तश्तरी (फ़ारसी)
बेकायदा – बे (फ़ारसी) + कायदा (अरबी)
बमवर्षा बम (अँगरेजी) + वर्षा (हिंदी)
(ख) रचना के आधार पर नए शब्द बनाने की प्रक्रिया को रचना या बनावट कहते हैं। रचना प्रक्रिया के आधार पर शब्दों के तीन भेद किए जाते हैं-
(i) रूढ़ शब्द (ii) यौगिक शब्द (iii) योगरूढ़ शब्द
(i) रूढ़ शब्द-वे शब्द जो किसी व्यक्ति, स्थान, प्राणी और वस्तु के लिए वर्षों से प्रयुक्त होने के कारण किसी विशिष्ट अर्थ में प्रचलित हो गए हैं, ‘रूढ़ शब्द’ कहलाते हैं। इन शब्दों में अर्थ की एक ही इकाई होती है। इन शब्दों की निर्माण प्रक्रिया भी ज्ञात नहीं होती तथा इनका कोई अन्य अर्थ भी नहीं होता। जैसे-दूध, गाय, रोटी, दीपक, पेड़, पत्थर, देवता, आकाश, मेंढ़क, स्त्री आदि ।
(ii) यौगिक शब्द-वे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों से बने हैं। उन शब्दों का अपना पृथक अर्थ भी होता है किंतु मिलकर संयुक्त अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें ‘यौगिक शब्द’ कहते हैं, जैसे- विद्यालय (विद्या + आलय), प्रेमसागर (प्रेम + सागर), प्रतिदिन (प्रति + दिन), दूधवाला (दूध + वाला), राष्ट्रपति (राष्ट्र + पति) एवं महर्षि (महा + ऋषि)।
-: क्रियाविशेषण :-
ऐसा अव्यय शब्द जो क्रिया की विशेषता को बताता है, उसे क्रियाविशेषण कहते हैं।
क्रियाविशेषण के भेद अर्थ की दृष्टि से क्रियाविशेषण चार प्रकार के होते हैं– सीनिवाचक क्रियाविशेषण, कालवाचक क्रियाविशेषण, रीतिवाचक क्रियाविशेषण, परिमाणबोधक क्रियाविशेषण।
I.स्थानवाचक क्रियाविशेषण- जो क्रियाविशेषण स्थिति और दशा का बोध कराता है, उसे स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। इसके दो उपभेद हैं-
दिशाबोधक- हर तरफ, जिधर, इधर, उधर, दाएँ, बाएँ, सर्वत्र, किधर आदि।
स्थितिबोधक- बाहर, भीतर, ऊपर, नीचे, आगे, पीछे, पास, दूर, सामने, यहाँ, वहाँ, जहाँ, तहाँ आदि।
II. कालवाचक क्रियाविशेषण- जो क्रियाविशेषण क्रिया के समय का बोध कराता है, उसे कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। इसके तीन उपभेद हैं-
समयबोधक- आज, कल, परसो, अब, जब, पहले, पीछे, सवेरे, फिर आदि।
अवधिबोधक- कभी न कभी, निरंतर, अबतक, सतत, नित्य, आजकल, सर्वदा, सदैव, लगातार, हमेशा, प्रायः आदि।
पुनः पुण्यबोधक- बार-बार, प्रतिदिन, बहुधा, कई बार, घड़ी घड़ी, हर घड़ी आदि।
III. रीतिवाचक क्रियाविशेषण- जो क्रियाविशेषण क्रिया की रीति (कैसे हो रही है) का बोध कराता है, उसे रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। इसके सात उपभेद हैं-
1 कारणबोधक- अतएव, अतः, अंततः आदि।
2 निषेधबोधक – मत, नहीं, न, ना आदि।
3 स्वीकारबोधक- ठीक, अच्छा, हाँ, जी, अवश्य, जरूर आदि।
4 प्रकारबोधक- परस्पर, अचानक, यूँही, ध्यानपूर्वक, जैसे-तैसे, सहसा आदि।
5 निश्चयबोधक – निःसंदेह, बेशक, वस्तुतः, सचमुच, मुख्यतः आदि।
6 अनिश्चयबोधक- यथासंभव, यथाशक्ति, शायद, कदाचित, यथासाध्य, यथासामर्थ, यथायोग्य, संभवतः आदि।
7 प्रश्नवाचक – कब, कहाँ, क्यों, कैसे, किसे आदि।
IV. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण- जो क्रियाविशेषण क्रिया के परिमाण या मात्रा का बोध कराता है, उसे परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। इसके पाँच उपभेद है-
1 पर्याप्तिबोधक- कंवल, बस, काफी, ठीक, पर्याप्त, बराबर आदि।
2 तुलनाबोधक- कितना, जितना, इतना, उतना आदि।
3 क्रमबोधक- एक-एक करके, यथाक्रम, क्रमानुसार आदि।
4 आधिक्यबोधक – भारी, बहुत, अधिक, अति, खूब, पूर्ण आदि।
5 न्यूनताबोधक- कम, थोड़ा, कुछ, जरा-सा, इतना-सा आदि।
-: संबंधबोधक :-
वे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम के साथ लगकर उनका वाक्य के अन्य पदों के साथ संबंध सूचित करें, उन्हें संबंधबोधक शब्द कहते हैं।
जैसे- मारे, बाद, पीछे, पूर्व, पहले, बिना, तरफ, ओर, समेत, सहित, आदि।
1.मेरा भूख के मारे दम निकल रहा है।
2.धन के बिना जीवन कठिन लगता है
-: समुच्चयबोधक :-
जो शब्द शब्दों, वाक्यांशो, वाक्यों को आपस में जोड़ने या अलग करने का काम करते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक कहते हैं।
समुच्चयबोधक शब्द के कई भेद होते हैं-
- संयोजक समुच्चयबोधक- ये वे शब्द होते हैं, जो पदों या वाक्यों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं।
जैसे- और, तथा, एवं, व आदि।
- अजय पढ़ रहा था, और सुरेश सो रहा था।
- रचना और जया स्कूल गई है।
2.विभाजक या विभक्त समुच्चयबोधक- ये वे शब्द होते हैं, जो पदों या वाक्यों को जोड़कर भी अलग-अलग व्यक्त करते हैं।
जैसे- या, अथवा आदि।
1. मैं राजू या विजय के घर चला जाऊँगा।
2.मैं आज बाजार जाऊँगा या घर में ही मैच देखूँगा।
3.विरोधदर्शक समुच्चयबोधक– ये पहले वाक्य के विषय का निषेध करके अन्य विषय को सूचित करते हैं।
जैसे-
किंतु, परंतु, लेकिन, बल्कि, अगर, मगर, पर आदि।
- उसने मुझे बताया था, परंतु मैंने उस पर विश्वास नहीं किया। 2.मैं उसे आगे पढ़ाना चाहता हूँ, किंतु मेरे पास धन नहीं है।
4.परिणामदर्शक समुच्चयबोधक- इस प्रकार के शब्दों से पहले वाक्य का परिणाम दूसरे वाक्य में नजर आता है।
जैसे- इसलिए, क्योंकि, जोकि, अतः आदि।
1. तुम अच्छे से पढ़ाई कर सको, इसलिए मैंने तुम्हें दिल्ली भेजा।
2. मैं परीक्षा में सफल हो गया, क्योंकि आपका आशीर्वाद साथ था।
5.संकेतवाचक समुच्चयबोधक- इस प्रकार के शब्दों से दो वाक्यों के बीच आपस के संबंध को दिखाया जाता है।
जैसे- यदि तो, जैसा-वैसा, जहाँ-वहाँ, जो-सो (वो), यद्यपि तथापि आदि।
1.यद्यपि तुम क्षमा के पात्र नहीं हो, तथापि मैं तुम्हारे लिए सिफारिश करूँगा।
2.यदि मैं अरुण से मिलूँगा, तो तुम्हारा संदेश दे दूँगा।
-: विस्मयादिबोधक :-
जिन शब्दों से भय, प्रेम, घृणा, क्रोध, इच्छा, शोक, विस्मय, उत्तेजना आदि का पता चले, उन्हें विस्मयादिबोधक कहते हैं।
यह निम्न प्रकार का होता है-
- आश्चर्यबोधक क्या! सच! ऐ ! ओ हो!
- हर्षबोधक- शाबाश! धन्य! वाह ! वाह !
- शोकबोधक- हाय! अरे! बाप रे! उफ!
- इच्छाबोधक- काश!
- घृणाबोधक- छिः!, धिक!
- अनुमोदनसूचक ठीक! अच्छा! भला!
- संबोधनसूचक – अरे!, अजी!, अरी!, हे!