अलंकार का शाब्दिक अर्थ है- ‘आभूषण’ हम कह सकते हैं कि ‘काव्य का आभूषण अलंकार होता है। ‘अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है- अलम् + कार। अलम् का अर्थ होता है- शोभा या सजावट तथा कार का अर्थ होता है- ‘करने वाला’ अर्थात ‘जो शोभा या सजावट करने वाला है’ अलंकार कहलाता है।
जिस प्रकार से शरीर पर आभूषण धारण करने से शरीर की शोभा बढ़ जाती है, उसी प्रकार से किसी काव्य में अलंकार प्रकट करने से उस काव्य की शोभा बढ़ जाती है। मानव शुरुआत से ही सौंदर्योपासक रहा है, उसकी इसी प्रवृत्ति ने काव्य में अलंकारों को जन्म दिया है। अगर हम अलंकार को एक सरल भाषा में समझना चाहे तो हम कह सकते हैं कि ‘‘जैसे ही नायिका ने सुना कि उसके पति की मृत्यु हो गई है, वह जोर से रोने लगी।’’ वाक्य को अलंकार के साथ कहना चाहें तो हम कह सकते हैं कि ‘‘जैसे ही नायिका ने सुना कि उसके पति की मृत्यु हो गई, उसकी आँखें मेघों के समान बरसने लगीं।’’ तो यहाँ पर ‘मेघों के समान बरसाना’ एक तरह का अलंकार उत्पन्न करना है, और जब हम किसी काव्य को इस प्रकार व्यक्त करते हैं, तो उस काव्य को पढ़ने में एक अलग ही आनंद की प्राप्ति होती है। और वह काव्य सुंदर लगने लगता है। ‘अलंकरोति इति अलंकारः’ अर्थात जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।
अलंकार की परिभाषा- ‘‘काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहते हैं।’’
वर्गीकरण-
यद्यपि कुछ विचारकों ने अलंकारों को शब्दालंकार, अर्थालंकार, रसालंकार, भावालंकार, मिश्रालंकार, उभयालंकार तथा संसृष्टि और संकर नामक भेदों में बाँटा है। इनमें प्रमुख शब्दालंकार तथा अर्थालंकार हैं। पहले उद्भट ने विषयानुसार, कुल 44 अलंकारों को छह वर्गों में विभाजित किया था, किंतु इनसे अलंकारों के विकास की भिन्न अवस्थाओं पर प्रकाश पड़ने की अपेक्षा भिन्न प्रवृत्तियों का ही पता चलता है। वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से रुद्रट ने वास्तव, औपम्य, अतिशय और श्लेष को आधार मानकर उनके चार वर्ग किए हैं। वस्तु के स्वरूप का वर्णन वास्तव है। इसके अंतर्गत 23 अलंकार आते हैं। किसी वस्तु के स्वरूप की किसी अप्रस्तुत से तुलना करके स्पष्टतापूर्वक उसे उपस्थित करने पर औपम्यमूलक 21 अलंकार माने जाते हैं। अर्थ तथा धर्म के नियमों के विपर्यय में अतिशयमूलक 12 अलंकार और अनेक अर्थोंवाले पदों से एक ही अर्थ का बोध कराने वाले श्लेषमूलक 10 अलंकार होते हैं। तथापि विचारकों ने
अलंकार के मुख्यतः तीन भेद माने हैं-
शब्दालंकार, अर्थालंकार तथा उभयालंकार
अलंकारों की स्थिति दो रूपों में हो सकती है- केवल रूप और मिश्रित रूप। मिश्रण की द्विविधता के कारण ‘संकर’ तथा ‘संसृष्टि’ अलंकारों का उदय होता है। शब्दालंकारों में अनुप्रास, यमक, श्लेष तथा वक्रोक्ति की प्रमुखता है। अर्थालंकारों की संख्या लगभग 125 तक पहुँच गई है।
सब अर्थालंकारों की मूलभूत विशेषताओं को ध्यान में रखकर आचार्यों ने इन्हें मुख्यतः पाँच वर्गों में विभाजित किया है-
(१) सादृश्यमूलक – उपमा, रूपक आदि
(२) विरोधमूलक- विषय, विरोधभास आदि
(३) शृंखलाबंध- सार, एकावली आदि
(४) तर्क, वाक्य, लोकन्यायमूलक- काव्यलिंग, यथासंख्य आदि
(५) गूढ़ार्थप्रतीतिमूलक – सूक्ष्म, पिहित, गूढ़ोक्ति आदि।