जब किसी वाक्यांश में क्रमिक रूप से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार होती है, तो उसे ‘छेकानुप्रास’ अलंकार कहते हैं। इस अलंकार में व्यंजनों की आवृत्ति उसी क्रम में होती है।
उदाहरण-
“ रीझि-रीझि रहसि-रहसि हँसि-हँसि उठै। साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई-दई।।”
यहाँ ‘रीझि-रीझि’, ‘रहसि-रहसि’, ‘हँसि-हँसि’ और ‘दई-दई’ में छेकानुप्रास है, क्योंकि व्यंजनों की आवृत्ति उसी क्रम में हो रही है।
परीक्षा के दृष्टिकोण से अन्य उदाहरण–
मोहि-मोहि मेरा मन मोहन मय ह्वै गयो।
कुकि-कुकि कलित कुंजन करत कलोल।
खेदी-खेदी खाती दीह दारुन दलन की।
घेर-घेर घोर गगन शोभा श्री।
चमक गई चपला चम-चम