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वृत्यानुप्रास अलंकार की परिभाषा/ उदाहरण

Posted on October 15, 2023March 16, 2024 By Nidhi Academy No Comments on वृत्यानुप्रास अलंकार की परिभाषा/ उदाहरण
  1. वृत्यानुप्रास अलंकार-

जब किसी काव्य (कविता) में किसी व्यंजन की आवृत्ति लगातार एक या अनेक बार होती है, तो उसे ‘वृत्यानुप्रास’ अलंकार कहते हैं। इसमें व्यंजन वर्णों की आवृत्ति  शब्द की शुरुआत अथवा अंत में स्वरूपतः होती है, क्रमतः नहीं।

उदाहरण-

‘‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। झुके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये।।’’ यहाँ केवल ‘त’ व्यंजन वर्ण की आवृत्ति कई बार हुई है। अतः इन पंक्तियों में वृत्यानुप्रास अलंकार की उत्पत्ति हुई है।

परीक्षा के दृष्टिकोण से अन्य उदाहरण-

  • चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल थल में।

  • सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावै। 

जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुबेद बतावै॥ 

  • चरर मरर खुल गए अरर रवस्फुटों से।

  • हमारे हरि हारिल की लकरी।

  • कल कानन कुंडल मोर पखा उर पे बनमाल विराजती है।

  • मोहनी मूरत साँवरी सूरत, नैना बने बिसाल।

  • कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि। 

  • कालिंदी कूल कदंब की डारिन।

  • कालिका सी किलकि कलेऊ देती काल को।

  • गुरु पद रज मृदु मंजुल।

  • बंदौ गुरु पद पदुम परगा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

  • बरसत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास।

  • रावनु रथी विरथी रघुवीरा।

  • विमल वाणी ने वीणा ली ,कमल कोमल कर में सप्रीत।

  • रघुपति राघव राजा राम। पतित पावन सीताराम।।

  • अति अगाधु अति औथरौ नदी कूप सरु बाइ।

  • प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि।   

  • गुन करि मोहि सूर सँवारे को निरगुन निरबैहै।

  • सहज सुभाय सुभग तन गोरे।

  • जब तुम मुझे मेले में मेरे खिलोने रूप पर।

  • पुरइन पात रहत ज्यों जल मन की मन ही माँझ रही।

  • संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित।

  • चढ़ तुंग शैल शिखरों पर सोम पियो रे।

  • पेट पीठ दोनों मिलकर है एक, चल रहा लकुटिया टेक।

  • सुंदर सुठि सुकुमार , बिबिध भांति भूषन बसन।

  • सपने सुनहले मन भाये।

अलंकार, इकाई 6, वृत्यानुप्रास अलंकार, सामान्य हिंदी

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