श्रुत्यानुप्रास अलंकार-
जब किसी काव्य (कविता) में एक ही उच्चारण स्थान वाले अथवा एक ही वर्ग (प्रायः माधुर्य वर्ग अर्थात ‘त’ वर्ग) के वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है, तो वहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार माना जाता है।
उदाहरण-
“दिनांत था थे दिननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।” यहाँ ‘त’ वर्ग ( त थ द ध न) की आवृत्ति हुई है। अतः यहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार है।
परीक्षा के दृष्टिकोण से अन्य उदाहरण-
तुलसीदास सीदत निस दिन देखत तुम्हारी निठुराई। (दन्त्य वर्णों- त थ द ध न र ल स की आवृत्ति)
निसिवासर सात रसातल लौं सरसात घने घन बन्धन नाख्यौ। (दन्त्य वर्णों- त थ द ध न र ल स की आवृत्ति)
तेही निसि सीता पहुँ जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई (दन्त्य वर्णों- त थ द ध न र ल स की आवृत्ति)
ता दिन दान दीन्ह धन धरनी। ( ‘त’ वर्ग- त थ द ध न की आवृत्ति)