समास एक संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “संक्षेप”। व्याकरण में, समास का तात्पर्य दो या दो से अधिक शब्दों के संक्षिप्त रूप में संयोजन से है, जिससे एक नया शब्द बनता है। यह प्रक्रिया भाषाई संरचना को अधिक संक्षिप्त और सरल बनाने में सहायक होती है। समास का मूल उद्देश्य वाक्यों को संक्षिप्त और सारगर्भित बनाना होता है, जिससे भाषाई अभिव्यक्ति अधिक प्रभावी और स्पष्ट हो जाती है।
समास की उत्पत्ति वैदिक संस्कृत से मानी जाती है, जहां इसका उपयोग प्रचलित था। प्राचीन ग्रंथों में समास का व्यापक रूप से प्रयोग किया गया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि इसकी जड़ें भारतीय भाषाई परंपरा में गहरी हैं। समास का उपयोग न केवल संस्कृत में बल्कि हिंदी, मराठी, गुजराती, और अन्य भारतीय भाषाओं में भी होता है।
समास के उपयोग के कई लाभ हैं। यह वाक्यों को संक्षिप्त और प्रभावशाली बनाता है, जिससे पाठकों के लिए इसे समझना आसान हो जाता है। उदाहरण के लिए, “राजा का पुत्र” को “राजपुत्र” के रूप में संक्षिप्त किया जा सकता है। इस प्रकार, समास का उपयोग शब्दों की संख्या को कम करता है और वाक्य को अधिक प्रभावशाली बनाता है।
समास की उपयोगिता केवल भाषाई संरचना तक सीमित नहीं है; यह साहित्यिक रचनाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कवियों और लेखकों के लिए समास का प्रयोग उनके लेखन को अधिक काव्यात्मक और संगीतमय बनाता है। इसके अलावा, समास का प्रयोग तकनीकी और वैज्ञानिक लेखन में भी किया जाता है, जहां जटिल शब्दों और अवधारणाओं को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
इस प्रकार, समास भाषाई संरचना को संक्षिप्त, स्पष्ट और प्रभावशाली बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
समास की परिभाषा
समास एक महत्वपूर्ण व्याकरणिक प्रक्रिया है, जो संस्कृत और हिंदी भाषा में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। समास का शाब्दिक अर्थ है ‘संक्षिप्त करना’ या ‘संक्षेपण’। व्याकरणिक दृष्टिकोण से, समास के माध्यम से दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर एक नया शब्द बनाया जाता है, जो संक्षिप्त रूप में अधिक अर्थपूर्ण होता है।
विभिन्न व्याकरण विशेषज्ञों ने समास की परिभाषा अलग-अलग तरीकों से की है। उदाहरण के लिए, पाणिनि के अनुसार, “समानाधिकरणं समासः” अर्थात समानाधिकरण वाले दो या दो से अधिक पदों का एक साथ मिलना समास कहलाता है। भट्टोजी दीक्षित ने समास की परिभाषा में कहा है कि, “वाक्यस्य संक्षिप्तं रूपं समासः” यानी वाक्य का संक्षिप्त रूप समास है।
समास का उद्देश्य वाक्य को संक्षिप्त और प्रभावी बनाना होता है। यह व्याकरणिक प्रक्रिया भाषा को अधिक संक्षिप्त, सौंदर्यमय और अर्थपूर्ण बनाती है। समास के माध्यम से भाषा में संक्षेपण और गति बढ़ती है, जिससे संवाद और लेखन में स्पष्टता और सरलता आती है।
समास का प्रयोग प्राचीन संस्कृत साहित्य से लेकर आधुनिक हिंदी साहित्य तक होता रहा है। इसके माध्यम से साहित्य में गहराई और संक्षिप्तता दोनों प्राप्त होती हैं। समास के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनका प्रयोग अलग-अलग संदर्भों में किया जाता है। समास की परिभाषा और उसके प्रकारों को समझना भाषा के उचित और प्रभावी प्रयोग में सहायक होता है।
समास के घटक
समास के अध्ययन में दो मुख्य घटक होते हैं: पूर्वपद और उत्तरपद। पूर्वपद का अर्थ है वह शब्द जो समास में पहले आता है, जबकि उत्तरपद वह शब्द है जो बाद में आता है। इन दोनों ही घटकों का समास के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान होता है। पूर्वपद और उत्तरपद न केवल समास की संरचना को निर्धारित करते हैं, बल्कि वे समास के अर्थ को भी प्रभावित करते हैं।
पूर्वपद और उत्तरपद के बिना समास की परिभाषा अधूरी है। पूर्वपद वह आधार है जिस पर समास का निर्माण संभव होता है, और उत्तरपद उस आधार को पूर्णता प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, “राजा” और “कुमार” शब्दों का समास “राजकुमार” में देखा जा सकता है। यहाँ “राजा” पूर्वपद है और “कुमार” उत्तरपद। दोनों शब्द मिलकर एक नए अर्थ का निर्माण करते हैं, जो कि “राजकुमार” है।
पूर्वपद और उत्तरपद की सही पहचान और उनकी सही जगह पर उपयोग समास की संरचना को सही और प्रभावी बनाता है। यदि इन घटकों का सही उपयोग न किया जाए, तो समास का अर्थ बदल सकता है या वह निरर्थक हो सकता है। इसलिए, समास के अध्ययन में इन दोनों घटकों की समझ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
समास के घटकों की पहचान और उनके सही उपयोग से भाषा में स्पष्टता और संक्षिप्तता आती है। यह न केवल वाक्यों को संक्षिप्त करने में मदद करता है, बल्कि भाषा के सौंदर्य को भी बढ़ाता है। सही समास का उपयोग भाषा को अधिक प्रभावशाली और अर्थपूर्ण बनाता है।
समास के प्रकार
समास के विभिन्न प्रकारों में से प्रमुख हैं: दिगु समास, तत्पुरुष समास, द्वंद्व समास, बहुव्रीहि समास, कर्मधारय समास आदि। प्रत्येक समास का अपना विशेष महत्त्व और उपयोग है।
दिगु समास: इस समास में संख्यावाचक शब्द और संज्ञा का मेल होता है। उदाहरण के लिए, ‘चौपाय’ (चार पाओं वाला) और ‘द्वारपाल’ (द्वार का पहरेदार)। यह समास संख्यात्मक और संज्ञात्मक तत्वों को जोड़ता है।
तत्पुरुष समास: इसमें पहला पद कारक होता है, जैसे ‘गंगाजल’ (गंगा का जल) और ‘राजपुत्र’ (राजा का पुत्र)। तत्पुरुष समास में पहला शब्द दूसरे शब्द के संबंध में कार्य या स्वामी को दर्शाता है।
द्वंद्व समास: इस समास में दोनों पद समान महत्त्व रखते हैं। उदाहरण के लिए, ‘राम-लक्ष्मण’ (राम और लक्ष्मण) और ‘पुस्तक-कॉपी’ (पुस्तक और कॉपी)। द्वंद्व समास में दोनों तत्व आपस में जोड़कर एक नए अर्थ का निर्माण करते हैं।
बहुव्रीहि समास: इस समास में जोड़ा गया शब्द किसी तीसरे वस्तु या व्यक्ति का बोध कराता है। जैसे ‘पंचमुखी’ (पांच मुख वाला) और ‘दशानन’ (दस मुख वाला)। बहुव्रीहि समास में नए शब्द का अर्थ उसके दोनों तत्वों के अर्थ से भिन्न होता है।
कर्मधारय समास: इस समास में पहला पद विशेषण और दूसरा पद संज्ञा होता है। उदाहरण के लिए, ‘नीलकंठ’ (नीला कंठ वाला) और ‘महाबली’ (महान बल वाला)। कर्मधारय समास में विशेषण और संज्ञा का संयोजन होता है जो एक विशेष गुण या विशेषता को दर्शाता है।
इन समासों के माध्यम से हिंदी भाषा में अधिक गहराई और स्पष्टता आती है। हर प्रकार के समास का अपना अनूठा स्थान और उपयोग होता है, जिससे भाषा का सौंदर्य और बढ़ता है।
दिगु समास
दिगु समास हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण अंग है जो दो शब्दों के संयोग से बनता है। इसमें पहला पद संख्यावाचक या विशेषण होता है और दूसरा पद संज्ञा होता है। इस प्रकार के समास में पहला शब्द दूसरे शब्द की विशेषता को दर्शाता है। उदाहरणार्थ, “चतुर्मुख” (चार मुख वाले), “द्वारपाल” (दरवाजे की रक्षा करने वाला) आदि।
दिगु समास की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है: “ऐसा समास जिसमें पहला पद संख्या या दिशा का बोध कराता है और दूसरा पद संज्ञा होता है, उसे दिगु समास कहते हैं।” यह समास अधिकतर संस्कृत भाषा से हिंदी में आया है और इसके प्रयोग से वाक्यों में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है।
दिगु समास के निर्माण का तरीका काफी सरल है। इसमें पहले संख्या या दिशा सूचक शब्द और उसके बाद संज्ञा का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, “त्रिलोकी” (तीन लोकों वाला), “द्वारपाल” (दरवाजे की रक्षा करने वाला) आदि। ये सभी उदाहरण दिगु समास के हैं जिसमें पहला शब्द संख्या या दिशा का संकेत देता है और दूसरा शब्द संज्ञा रूप में प्रयोग होता है।
व्यावहारिक संदर्भ में, दिगु समास का प्रयोग विभिन्न साहित्यिक और शैक्षिक लेखन में होता है। यह समास न केवल भाषा को संक्षिप्त और प्रभावी बनाता है, बल्कि उसे अधिक वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने में भी सहायक होता है।
तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास संस्कृत व्याकरण का एक प्रमुख भाग है, जिसका अर्थ है “किसका-पुरुष”। यह समास दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से बनता है, जिसमें पहला शब्द दूसरा शब्द का विशेषण होता है। तत्पुरुष समास में पहला शब्द हमेशा विभक्ति के रूप में होता है, जो दूसरे शब्द के साथ मिलकर नया अर्थ प्रकट करता है।
तत्पुरुष समास के मुख्यतः दो भेद होते हैं: कर्मधारय तत्पुरुष और द्विगु तत्पुरुष। कर्मधारय तत्पुरुष में पहला शब्द दूसरा शब्द का विशेषण होता है, जैसे “राजपुत्र” जिसमें “राजा” और “पुत्र” मिलकर “राजा का पुत्र” का अर्थ प्रकट करते हैं। वहीं, द्विगु तत्पुरुष में पहला शब्द संख्यावाचक होता है, जैसे “त्रिलोकी” जिसमें “त्रि” और “लोकी” मिलकर “तीन लोक” का अर्थ प्रकट करते हैं।
तत्पुरुष समास के उदाहरणों में “गिरिजा” (गिरि + जा = पर्वत की पुत्री), “मुखपुस्तिका” (मुख + पुस्तिका = चेहरा पहचानने वाली पुस्तिका), और “आत्मज्ञान” (आत्म + ज्ञान = आत्मा का ज्ञान) शामिल हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि तत्पुरुष समास में पहले और दूसरे शब्द का मेल एक नया और विशेष अर्थ उत्पन्न करता है।
तत्पुरुष समास के प्रयोग से भाषा में संक्षिप्तता और स्पष्टता आती है। यह समास भाषा को संक्षिप्त और प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तत्पुरुष समास का अध्ययन करने से न केवल भाषा की समझ बढ़ती है, बल्कि इसके सही प्रयोग से भाषा में सटीकता भी आती है।
द्वंद्व समास
द्वंद्व समास हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो दो या अधिक शब्दों को सम्मिलित करके एक नया शब्द बनाने की प्रक्रिया को दर्शाता है। द्वंद्व समास में सम्मिलित शब्दों का संबंध समान महत्व का होता है, अर्थात दोनों शब्द समान रूप से प्रधान होते हैं। इस प्रकार के समास में किसी एक शब्द का प्रधानता नहीं होती, बल्कि दोनों शब्द मिलकर एक नया और संगठित अर्थ व्यक्त करते हैं।
द्वंद्व समास की परिभाषा के अनुसार, जब दो या अधिक पद एक साथ मिलकर एक संयुक्त पद का निर्माण करते हैं और उन पदों में से प्रत्येक का अर्थ समान रूप से महत्वपूर्ण होता है, तो उसे द्वंद्व समास कहा जाता है। उदाहरण के लिए, ‘राम-सीता’ द्वंद्व समास है, जहाँ ‘राम’ और ‘सीता’ दोनों ही समान महत्व रखते हैं और मिलकर एक संयुक्त अर्थ प्रदान करते हैं।
द्वंद्व समास की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- इसमें सम्मिलित दोनों पद समान महत्व रखते हैं।
- दोनों पद मिलकर एक नया अर्थ बनाते हैं, जो मूल पदों से अलग होता है।
- द्वंद्व समास में संधि का नियम भी लागू हो सकता है, जिससे नया शब्द अधिक संगठित और स्पष्ट होता है।
द्वंद्व समास के कई उदाहरण हिंदी भाषा में देखने को मिलते हैं, जैसे ‘सुख-दुःख’, ‘रात-दिन’, ‘नर-नारी’ आदि। इन सभी उदाहरणों में दोनों पदों का महत्व समान होता है और मिलकर एक नया संयुक्त अर्थ व्यक्त करते हैं।
विभिन्न व्याकरणिक दृष्टिकोणों से भी द्वंद्व समास को समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, पाणिनीय व्याकरण में द्वंद्व समास को विशेष महत्व दिया गया है और इसके नियमों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसी प्रकार, आधुनिक व्याकरण में भी द्वंद्व समास का अध्ययन किया जाता है और इसके उपयोग के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है।
समास के उपयोग के उदाहरण
समास का प्रयोग न केवल साहित्य में बल्कि हमारे दैनिक जीवन में भी व्यापक रूप से होता है। इसका उद्देश्य वाक्य को संक्षिप्त और प्रभावी बनाना होता है। विभिन्न प्रकार के समासों को समझने के लिए हम कुछ उदाहरणों पर विचार करेंगे, जो साहित्यिक और सामान्य जीवन में प्रचलित हैं।
तत्पुरुष समास का उदाहरण लें: ‘राजकुमार’ यहां ‘राजा’ और ‘कुमार’ का संगम है, जो एक राजा के पुत्र को दर्शाता है। इसी प्रकार ‘गृहकार्य’ में ‘गृह’ और ‘कार्य’ का मेल है, जो घर के कामकाज को दर्शाता है।
द्विगु समास में संख्यावाची शब्द का प्रयोग होता है। जैसे ‘त्रिलोक’ – जिसमें ‘त्रि’ का अर्थ तीन और ‘लोक’ का अर्थ दुनिया है, यह तीनों लोकों को मिलाकर बना है। एक और उदाहरण ‘दशानन’ है, जिसका अर्थ दस मुखों वाला, यानी रावण।
बहुव्रीहि समास में, उदाहरण के लिए, ‘चक्रधारी’ कहा जाता है – चक्र यानी पहिया और धारी यानी धारण करने वाला। यह शब्द भगवान विष्णु को दर्शाता है, जो चक्र धारण करते हैं।
अव्ययीभाव समास में, जैसे ‘यथासमय’ का उदाहरण लें। यहां ‘यथा’ का अर्थ है ‘जैसा’ और ‘समय’ का मतलब समय है। यह समास समयानुसार या समय के अनुसार का बोध कराता है।
दैनिक जीवन में भी समास के उदाहरण देखे जा सकते हैं। जैसे ‘रेलवे स्टेशन’ – रेलवे और स्टेशन का मेल। ‘पुस्तकालय’ – पुस्तक और आलय का संगम, जिसका अर्थ है किताबों का घर या लाइब्रेरी।
इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि समास का प्रयोग भाषा को संक्षिप्त, प्रभावी और सुंदर बनाने में सहायक होता है। यह न केवल साहित्यिक रचनाओं में बल्कि हमारी दैनिक बोली-चाली में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
“जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नवीन शब्द की रचना करते हैं, तो उस प्रक्रिया को समास कहते हैं।” तथा इस प्रक्रिया से बनने वाले शब्द सामासिक पद या शब्द कहलाते हैं।
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समास-विग्रह- जब समस्त पद के सभी पदों को अलग-अलग किया जाता है, उस प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं।
समस्त पद- समास-विग्रह से बना नया शब्द समस्त पद कहलाता है।
पूर्व पद- समस्त पद का पहला पद पूर्व पद या प्रथम पद कहलाता है।
उत्तर पद- समस्त पद का दूसरा पद उत्तर पद या द्वितीय पद कहलाता है।
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समास के प्रकार (प्रधानता के आधार पर)
समास प्रधानता के आधार पर चार प्रकार के होते हैं-
पूर्व पद प्रधान – अव्ययीभाव समास
दोनों पद प्रधान – द्वन्द्व समास
दोनों पद अप्रधान (गौण) – बहुव्रीहि समास
उत्तर पद प्रधान – तत्पुरुष समास,
१. अव्ययीभाव समास- जिस समास में पूर्व पद प्रधान हो, तथा कोई अविकारी शब्द (अव्यय शब्द) अथवा कोई उपसर्ग हो, तो वहाँ अव्ययीभाव समास होता है। किसी शब्द की आवृत्ति होने पर भी अव्ययीभाव समास होता है।
पहचान-
- शब्द की शुरुआत में भर, निर्, प्रति, यथा, बे, आ, ब, उप, अधि, अनु, आदि शब्द मिल जाते हैं।
- इसका समस्त पद वाक्य में क्रियाविशेषण का काम करता है।
- इसका समस्त पद लिंग, वचन, कारक तथा काल से अप्रभावित रहता है।
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२. द्वन्द्व समास – जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं, तथा दोनों पदों में या तो पूरक का संबंध या विलोम का संबंध पाया जाता है, वहाँ द्वन्द्व समास होता है।
द्वन्द्व समास के तीन प्रकार होते हैं- वैकल्पिक द्वन्द्व, इतरेतर द्वन्द्व, समाहार द्वन्द्व।
(क) वैकल्पिक द्वन्द्व समास- जहाँ दोनों पद ‘अथवा’ शब्द से जुड़े होते हैं, वहाँ वैकल्पिक द्वन्द्व समास होता है।
जैसे-
पाप-पुण्य – पाप अथवा पुण्य
देवासुर – देव अथवा असुर
रात-दिन – रात अथवा दिन
आग-पानी – आग अथवा पानी
जय-पराजय जय अथवा पराजय
दिवारात्रि – दिवस अथवा रात्रि
कर्तव्याकर्तव्य – कर्तव्य अथवा अकर्तव्य
यश-अपयश – यश अथवा अपयश
लाभ-हानि – लाभ अथवा हानि
धर्माधर्म – धर्म अथवा अधर्म
(ख) इतरेतर द्वन्द्व समास- जहाँ दोनों पद ‘और’ शब्द से जुड़े होते हैं, वहाँ इतरेतर द्वन्द्व समास होता है।
जैसे-
शिव-पार्वती – शिव और र्पावती
अन्नजल – अन्न और जल
लोटा-डोर – लोटा और डोरी
दाल-रोटी दाल और रोटी
हरिहर – हरि और हर
माता-पिता – माता और पिता
राम-लक्ष्मण – राम और लक्ष्मण
गौरीशंकर – गौरी और शंकर
सीताराम – सीता और राम
हवा-पानी हवा और पानी
(ग) समाहार द्वन्द्व समास- जहाँ दोनों पदों से उनके जैसे सभी पदों का बोध होता है, वहाँ समाहार द्वन्द्व समास होता है।
जैसे-
रुपया-पैसा – रुपया और पैसा
लेने-देन – लेना और देना
भूल-चूक – भूल, गलती आदि
जन्म-मरण – जन्म और मरण
हाथ-पाँव हाथ और पाँव
घास-फूस – घास और फूस
थोड़ा-बहुत – थोड़ा या बहुत
चमक-दमक – चमक और दमक
बोल-चाल बातचीत आदि
मार-पीट – मारना और पीटना
३. बहुव्रीहि समास –
जिस समस्त पद के दोनों पद गौण होते हैं, तथा ये दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद को अस्तीत्व में लाते हैं, और वही पद प्रधान होता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
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४. तत्पुरुष समास – जिस समास में पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
इस समास में समस्त पद बनाते समय कारक चिह्न का लोप हो जाता है।
तत्पुरुष समास के दो भेद होते हैं- (अ) व्याधिकरण (कारक) तत्पुरुष समास ।
(ब) समानाधिकरण तत्पुरुष समास ।
(अ) व्याधिकरण (कारक) तत्पुरुष- यह तत्पुरुष समास 6 प्रकार का होता है, जो
कारक चिन्ह के आधार पर होता है-
(क) कर्म अथवा द्वितीय तत्पुरुष समास-
इसमें पूर्व पद के साथ ‘को’ कारक चिन्ह लगता है।
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(ख) करण अथवा तृतीय तत्पुरुष समास-
इसमें पूर्व पद के साथ ‘से/के द्वारा’ कारक चिन्ह लगता है।
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(ग) संप्रदान अथवा चतुर्थ तत्पुरुष समास-
इसमें पूर्व पद के साथ ‘के लिए’ कारक चिन्ह लगता है।
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(घ) अपादान अथवा पंचम तत्पुरुष समास-
इसमें पूर्व पद के साथ ‘से’ (अलग होना) कारक चिन्ह लगता है।
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(च) संबंध अथवा षष्ठ तत्पुरुष समास-
इसमें पूर्व पद के साथ ‘का, की, के’ कारक चिन्ह लगता है।
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(छ) अधिकरण अथवा सप्तम तत्पुरुष समास-
इसमें पूर्व पद के साथ ‘में, पर’ कारक चिन्ह लगता है
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(ब) समानाधिकरण तत्पुरुष समास-
यह तत्पुरुष समास दो प्रकार का होता है- द्विगु समास और कर्मधारय समास।
(क) द्विगु समास- द्विगु समास में पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है, किन्तु इसका पूर्व पद सदैव संख्यावाचक होता है।
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६. कर्मधारय समास – कर्मधारय समास का पूर्व पद गौण और उत्तर पद प्रधान होता है, किन्तु इसके दोनों पदों के मध्य विशेषण – विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध पाया जाता है।
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