परिचय
कारक एक महत्वपूर्ण व्याकरणिक तत्व है जो वाक्य संरचना में शब्दों के आपसी संबंध को स्पष्ट करता है। संस्कृत और हिंदी व्याकरण में, कारक शब्दों के बीच के संबंधों को दर्शाने वाले विशेष चिह्न होते हैं। यह शब्दों के संबंध को निर्धारित करने में मदद करता है, जिससे वाक्य का सही अर्थ निकलता है।
आम तौर पर, कारक यह बताता है कि किसी क्रिया के साथ कौन सा संज्ञा या सर्वनाम किस प्रकार से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, ‘रमेश ने किताब पढ़ी’ वाक्य में ‘रमेश’ कर्ता कारक है, जो यह बताता है कि क्रिया ‘पढ़ी’ किसने की। इसी प्रकार, ‘किताब’ कर्म कारक है जो यह बताता है कि क्रिया का लक्षित वस्तु क्या है।
कारक चिह्न वाक्य में विभिन्न शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करने के लिए आवश्यक होते हैं। यह वाक्य की संरचना को समझने और सही ढंग से व्याख्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। व्याकरण में, विभिन्न प्रकार के कारक होते हैं जैसे कि कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, आदि।
इन कारकों की पहचान करना और उनका सही उपयोग करना भाषा की शुद्धता और स्पष्टता के लिए अत्यंत आवश्यक है। उदाहरण स्वरूप, ‘शाम तक काम खत्म कर दो’ वाक्य में ‘शाम तक’ समय कारक है जो यह दर्शाता है कि कार्य कब तक समाप्त होना चाहिए। इसी प्रकार, विभिन्न कारक वाक्य की संरचना को समझने और उसे सही ढंग से बनाने में सहायता करते हैं।
इस प्रकार, कारक व्याकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो वाक्य के विभिन्न तत्वों के बीच के संबंध को स्पष्ट करता है और भाषा को संरचनात्मक रूप से मजबूत बनाता है।
कारक की परिभाषा
हिंदी व्याकरण में ‘कारक’ एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो वाक्य निर्माण और भाषा के अर्थपूर्ण उपयोग को स्पष्ट करने में सहायक होती है। कारक वह शब्द है जो संज्ञा या सर्वनाम के साथ जुड़कर वाक्य में उसके संबंध को दर्शाता है। यह संबंध क्रिया और संज्ञा के बीच होता है, जो वाक्य में विभिन्न भूमिकाओं और कार्यों को चिन्हित करता है।
कारक का मुख्य उद्देश्य वाक्य में स्पष्टता और अर्थप्रदता लाना होता है। उदाहरण के लिए, “राम ने सीता को फूल दिया।” इस वाक्य में ‘राम’ कर्ता है, ‘सीता’ कर्म है और ‘फूल’ साधन है। यहाँ ‘ने’ और ‘को’ कारक चिन्ह हैं, जो शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हैं।
कारक के प्रयोग से वाक्य के विभिन्न अंगों के बीच के संबंध को समझा जा सकता है। यह संबंध क्रिया के प्रकार, समय, स्थान, साधन, कारण आदि के अनुसार बदलता है। उदाहरणस्वरूप, “राम ने पुस्तक पढ़ी।” में ‘ने’ कर्ता कारक है, जबकि “राम ने पुस्तक से ज्ञान प्राप्त किया।” में ‘से’ साधन कारक है।
इस प्रकार, कारक शब्द और उसके चिन्ह वाक्य के विभिन्न तत्वों के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हैं और वाक्य को अधिक प्रभावी एवं अर्थपूर्ण बनाते हैं। हिंदी भाषा में कारक की परिभाषा और उसके विभिन्न प्रकारों को समझना आवश्यक है, ताकि भाषा का सही और सटीक उपयोग किया जा सके।
कारक के भेद
संस्कृत और हिंदी व्याकरण में ‘कारक’ शब्द का विशेष महत्व है। कारक का अर्थ है किसी क्रिया के संपादन में सहायक तत्व। कारक को विभिन्न भेदों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं:
प्रथमा कारक
प्रथमा कारक को कर्ता कारक भी कहते हैं। वाक्य में जो कार्य करता है, वह प्रथमा कारक कहलाता है। उदाहरण के लिए, “राम खाना खाता है” में “राम” प्रथमा कारक है।
द्वितीया कारक
द्वितीया कारक को कर्म कारक भी कहते हैं। यह वाक्य में उस पर कार्य का निष्पादन होने का बोध कराता है। उदाहरण के लिए, “राम खाना खाता है” में “खाना” द्वितीया कारक है।
तृतीया कारक
तृतीया कारक साधन कारक के रूप में जाना जाता है। इसमें वह साधन या वस्तु बताई जाती है जिसके द्वारा कार्य संपादित होता है। उदाहरण के लिए, “राम कलम से लिखता है” में “कलम” तृतीया कारक है।
चतुर्थी कारक
चतुर्थी कारक को संप्रदान कारक कहते हैं। इसमें जिसको कुछ दिया जाता है वह चतुर्थी कारक होता है। उदाहरण के लिए, “राम सीता को पुस्तक देता है” में “सीता” चतुर्थी कारक है।
पंचमी कारक
पंचमी कारक अपादान कारक के रूप में जाना जाता है। इसमें वाक्य में किसी स्थान या वस्तु से अलग होने का बोध होता है। उदाहरण के लिए, “राम पेड़ से गिरा” में “पेड़” पंचमी कारक है।
षष्ठी कारक
षष्ठी कारक संबंध कारक कहलाता है। यह संबंध या अधिकार का बोध कराता है। उदाहरण के लिए, “राम का घर बड़ा है” में “राम का” षष्ठी कारक है।
सप्तमी कारक
सप्तमी कारक अधिकरण कारक के नाम से जाना जाता है। यह स्थान या स्थिति का बोध कराता है। उदाहरण के लिए, “राम घर में है” में “घर में” सप्तमी कारक है।
संबोधन कारक
संबोधन कारक पुकारने या संबोधित करने का कारक है। इसमें किसी को बुलाने या ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, “हे राम! सुनो” में “राम” संबोधन कारक है।
प्रथमा कारक
संस्कृत और हिंदी व्याकरण में प्रथमा कारक का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रथमा कारक का प्रयोग मुख्यतः वाक्य में कर्ता को स्पष्ट करने के लिए होता है। यह कर्ता वह होता है जो क्रिया को संपन्न करता है। इस कारक का प्रयोग सामान्यतः वाक्य के प्रारंभ में या सब्जेक्ट के रूप में होता है।
उदाहरण के लिए, वाक्य “राम स्कूल जाता है” में “राम” प्रथमा कारक है, जो कर्ता को इंगित करता है। इस प्रकार के वाक्यों में कर्ता का उल्लेख प्रथमा कारक के माध्यम से होता है, जिससे पता चलता है कि क्रिया किसने की है।
प्रथमा कारक का प्रयोग केवल नामों के साथ ही नहीं, बल्कि सर्वनामों के साथ भी होता है। उदाहरण के लिए, “मैं किताब पढ़ता हूँ” में “मैं” प्रथमा कारक है। इसी प्रकार, “तुम खेलते हो” वाक्य में “तुम” प्रथमा कारक है।
व्याकरणिक दृष्टि से प्रथमा कारक का महत्वपूर्ण योगदान यह है कि यह वाक्य में कर्ता की पहचान को स्पष्ट और सटीक बनाता है। इससे पाठक या श्रोता को यह समझने में आसानी होती है कि क्रिया किसके द्वारा की गई है।
सारांश में, प्रथमा कारक वाक्य संरचना में कर्ता को पहचानने और उसका उल्लेख करने के लिए प्रयुक्त होता है। यह हिंदी और संस्कृत व्याकरण का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो वाक्य को स्पष्ट और संप्रेषणीय बनाता है।
द्वितीया कारक
हिंदी व्याकरण में द्वितीया कारक का महत्वपूर्ण स्थान है। द्वितीया कारक का प्रयोग कर्म पद को सूचित करने के लिए होता है, जो क्रिया के प्रभाव क्षेत्र में आता है। इस कारक के चिन्ह को पहचानने के लिए वाक्य में ‘को’ का प्रयोग महत्वपूर्ण होता है।
द्वितीया कारक का मुख्य कार्य वाक्य में कर्म की पहचान करना और उसे स्पष्ट करना होता है। उदाहरण के तौर पर, “राम ने किताब पढ़ी।” इस वाक्य में ‘किताब’ द्वितीया कारक में है, क्योंकि यह क्रिया ‘पढ़ी’ के कर्म के रूप में कार्य कर रहा है।
द्वितीया कारक में कई बार ‘को’ का भी प्रयोग किया जाता है, जैसे “राम ने सीता को बुलाया।” यहाँ ‘सीता’ द्वितीया कारक में है क्योंकि वह क्रिया ‘बुलाया’ का लक्ष्य है। यह वाक्य द्वितीया कारक का एक स्पष्ट उदाहरण है, जहाँ ‘को’ का प्रयोग कर्म को स्पष्ट करने के लिए किया गया है।
द्वितीया कारक के अन्य उदाहरणों में शामिल हैं:
- “मुझे पानी दो।” – यहाँ ‘पानी’ द्वितीया कारक में है।
- “अध्यापक ने छात्र को प्रश्न पूछा।” – यहाँ ‘छात्र’ द्वितीया कारक है।
- “उन्होंने मुझे पत्र लिखा।” – इस वाक्य में ‘मुझे’ द्वितीया कारक का प्रयोग हुआ है।
द्वितीया कारक के प्रयोग से वाक्य में कर्म और क्रिया के बीच का संबंध स्पष्ट हो जाता है, जिससे वाक्य अधिक सुसंगठित और स्पष्ट बनते हैं। इस प्रकार द्वितीया कारक हिंदी व्याकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो वाक्य संरचना को बेहतर और सुगम बनाता है।
तृतीया और चतुर्थी कारक
तृतीया कारक और चतुर्थी कारक संस्कृत व्याकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तृतीया कारक का मुख्य रूप से साधन, साध्य या यंत्र के रूप में प्रयोग होता है। यह क्रिया के साधन को इंगित करता है। तृतीया कारक के चिन्ह ‘से’, ‘द्वारा’, ‘के द्वारा’ आदि होते हैं। उदाहरण के लिए, “राम ने कलम से लिखा।” इस वाक्य में ‘कलम’ तृतीया कारक में है क्योंकि लिखने की क्रिया ‘कलम’ के माध्यम से संपन्न हो रही है।
चतुर्थी कारक का प्रयोग करकर्ता के संप्रदान या लाभार्थी को इंगित करने के लिए किया जाता है। यह किसी क्रिया के फलस्वरूप किसी को कुछ मिलने या प्राप्त होने की स्थिति को प्रकट करता है। चतुर्थी कारक के चिन्ह ‘के लिए’, ‘को’, ‘पर’ आदि होते हैं। उदाहरण के लिए, “राम ने सीता को पुस्तक दी।” इस वाक्य में ‘सीता’ चतुर्थी कारक में है क्योंकि पुस्तक प्राप्त करने वाली संप्रदानकर्ता है।
उदाहरणों के माध्यम से तृतीया और चतुर्थी कारक को समझना सरल हो जाता है। “माली ने पौधों को पानी से सींचा।” इस वाक्य में ‘पानी’ तृतीया कारक में है क्योंकि सींचने की क्रिया पानी के माध्यम से संपन्न हो रही है। “राम ने मोहन को मिठाई दी।” यहां ‘मोहन’ चतुर्थी कारक में है क्योंकि मिठाई प्राप्त करने वाला संप्रदानकर्ता है।
तृतीया और चतुर्थी कारक के सही उपयोग से वाक्य का अर्थ स्पष्ट और सटीक बनता है। यह व्याकरण के नियमों का पालन करते हुए भाषा को अधिक व्यवस्थित और समझने योग्य बनाता है। इन कारकों का सही प्रयोग न केवल भाषा की शुद्धता को बनाए रखता है बल्कि संप्रेषण की प्रभावशीलता को भी बढ़ाता है।
पंचमी और षष्ठी कारक
हिंदी व्याकरण में, पंचमी और षष्ठी कारक का विशेष महत्व है। पंचमी कारक का उपयोग किसी स्थान से अलगाव या किसी वस्तु से दूरी को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह ‘से’ चिन्ह द्वारा पहचाना जाता है। उदाहरण के लिए, “राम घर से निकला।” यहाँ “से” पंचमी कारक का संकेत है, जो घर से राम के अलगाव को दर्शाता है।
पंचमी कारक के अन्य उदाहरणों में शामिल हैं: “वह बाजार से लौट आया।” और “नदी से पानी लिया।” इन वाक्यों में भी ‘से’ चिन्ह के माध्यम से पंचमी कारक का उपयोग स्पष्ट होता है।
दूसरी ओर, षष्ठी कारक का उपयोग स्वामित्व या संबंध को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह ‘का’, ‘के’, ‘की’ चिन्हों द्वारा पहचाना जाता है। उदाहरण के लिए, “राम का घर सुंदर है।” यहाँ ‘का’ चिन्ह षष्ठी कारक का संकेत है, जो राम के स्वामित्व को दर्शाता है।
षष्ठी कारक के अन्य उदाहरणों में शामिल हैं: “सीता की किताब नई है।” और “बच्चों के खिलौने बिखरे हुए हैं।” इन वाक्यों में ‘की’ और ‘के’ चिन्हों के माध्यम से षष्ठी कारक का उपयोग स्पष्ट होता है।
संक्षेप में, पंचमी कारक का उपयोग किसी स्थान से अलगाव को दर्शाने के लिए ‘से’ चिन्ह के साथ किया जाता है, जबकि षष्ठी कारक का उपयोग स्वामित्व या संबंध को दर्शाने के लिए ‘का’, ‘के’, ‘की’ चिन्हों के साथ किया जाता है। इन दोनों कारकों का सही उपयोग हिंदी भाषा की सटीकता और सुंदरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सप्तमी और संबोधन कारक
हिन्दी व्याकरण में सप्तमी और संबोधन कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सप्तमी कारक का प्रयोग किसी स्थान, वस्तु या व्यक्ति के संबंध में होता है। यह कारक स्थान, समय या साधन की स्थिति को प्रकट करता है। सप्तमी कारक के चिन्ह ‘में’, ‘पर’, ‘से’, ‘के साथ’ आदि हैं। उदाहरण के लिए, “किताब मेज़ पर है” वाक्य में ‘मेज़ पर’ सप्तमी कारक है, जो स्थान को सूचित करता है। इसी प्रकार, “मैं सुबह 5 बजे उठता हूँ” वाक्य में ‘सुबह 5 बजे’ सप्तमी कारक है, जो समय को दर्शाता है।
संबोधन कारक का प्रयोग किसी व्यक्ति या वस्तु को संबोधित करने के लिए होता है। यह कारक विशेष रूप से वाक्य की उस स्थिति को दर्शाता है, जहाँ किसी को पुकारा या बुलाया जाता है। संबोधन कारक के चिन्ह ‘हे’, ‘अरे’, ‘ओ’ आदि होते हैं। उदाहरण के लिए, “हे राम, तुम्हें याद है?” वाक्य में ‘हे राम’ संबोधन कारक है, जो सीधे राम को संबोधित करता है। इसी प्रकार, “अरे भाई, यहाँ आओ” वाक्य में ‘अरे भाई’ संबोधन कारक है।
सप्तमी और संबोधन कारक भाषा की संरचना में महत्वपूर्ण होते हैं। ये कारक वाक्यों को स्पष्ट और सुसंगत बनाते हैं, जिससे संप्रेषण की प्रक्रिया अधिक प्रभावी होती है। सप्तमी कारक का सही प्रयोग स्थान, समय और साधन की जानकारी सही रूप में प्रस्तुत करने में मदद करता है, जबकि संबोधन कारक संवाद में व्यक्तिगत संपर्क और भावनात्मक तत्व जोड़ता है।
कारक की परिभाषा-
“जो शब्द किसी शब्द से क्रिया का संबंध बताए, वह “कारक” कहलाता है” अथवा किसी वाक्य में जो शब्द क्रिया को संज्ञा या सर्वनाम से जोड़ते हैं, वह “कारक चिन्ह” कहलाते हैं।
जैसे- श्री कृष्ण ने सत्य की रक्षा के लिए दुष्टों का नाश किया।
यहां पर ‘ने’, ‘की’, ‘के’, ‘लिए’ और ‘का’ कारक चिन्ह क्रिया को क्रमशः ‘श्री कृष्ण’, ‘सत्य’, ‘रक्षा’ और ‘दुष्टों’ से जोड़ने के लिए आए हैं अतः यह कारक चिन्ह / परसर्ग / विभक्ति कहलाते हैं।
1.कारक चिन्ह को कुछ विद्वान परसर्ग अथवा विभक्ति के नाम से भी जानते हैं।
2.किसी भी वाक्य में कारक चिन्ह से पहले उसका कारक होता है।
3.केवल संबोधन कारक में कारक चिन्ह पहले आता है तथा बाद में कारककारक चिन्ह मुख्यतः आठ प्रकार के होते हैं।
कारक विभक्ति (चिन्ह)
कर्ता ने, शून्य ( के, द्वारा, से )
कर्म को, शून्य
करण से ( साधन या माध्यम )
सम्प्रदान के लिए
अपादान से ( अलग / पास होने का बोध )
संबंध का, की, के, रा, री, रे
अधिकरण में, पर
संबोधन हे!, अरे!, अजी!, सुनो!
नोट- यदि कारक के साथ कोई कारक चिन्ह नहीं दिया होता, तो उस कारक का कारक चिन्ह ‘शून्य’ कहलाता है।
- बालक रोटी खाता है।
- मोहन ने किताब पढ़ी।
1.कर्ता कारक –
कर्ता कारक वह है, जो वाक्य में काम करता है अर्थात संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्य में क्रिया करता है, कर्ता कारक कहलाता है। इसके साथ आने वाला चिन्ह ‘कर्ता कारक चिन्ह’ कहलाता है तथा इसका कारक चिन्ह ‘ने’ ( वाच्य में कारक चिन्ह के द्वारा, से ) होता है। क्रिया के साथ ‘कौन’ / ‘किसने’ से प्रश्न करने पर जो उत्तर प्राप्त होता है, वह उत्तर कर्ता होता है। ( कर्मवाच्य में ‘किसके’ तथा भाववाच्य में ‘किससे’ के द्वारा उत्तर प्राप्त होता है। )
जैसे-
1.वृक्ष हमें शुद्ध हवा देते हैं।
2.उसने जाने से पहले भोजन किया था।
3.सुमित अपने घर में सबसे बड़ा बेटा है।
4.बंदर ने केले खाए।
5.राजा ने प्रजा की सुविधा के लिए सड़क बनवाई थी।
2.कर्म कारक –
कर्म कारक वह है जिस पर काम का प्रभाव पड़ता है अर्थात संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़ता है। इसके साथ आने वाला चिन्ह ‘कर्म कारक चिन्ह’ कहलाता है, तथा इसका कारक चिन्ह ‘को ’ होता है। कर्म की पहचान
जैसे-
1.बालक ने रोटी खाई है।
2.शिक्षक ने छात्रों को पढ़ाया था।
3.किसान ने खेत में घूमते हुए बैल को पीटा।
4.मुखिया ने शहर के शिक्षक को बुलाया।
5.बच्चा सुबह से किताब पढ़ रहा है।
3.करण कारक –
वाक्य में जिस साधन या माध्यम से क्रिया होती है, उसे ही ‘करण कारक’ कहते हैं अर्थात संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप की सहायता से क्रिया संपन्न होती है। इसके साथ आने वाला चिन्ह ‘करण कारक चिन्ह’ कहलाता है, तथा इसका कारक चिन्ह ‘से ’, ‘द्वारा’ (के द्वारा के माध्यम का अर्थ लिए हुए ) होता है।
जैसे-
1.शिकारी ने बंदूक से शेर को मारा। (साधन)
2.बीमार बच्चा मुख से सांस ले रहा था। (साधन)
3.वह अपने पाप से गरीब हुआ है। (कारण)
4.आपकी मदद से उसे लाभ हुआ था। (कारण)
4.सम्प्रदान कारक –
कर्ता जिसके लिए या जिस उद्देश्य के लिए क्रिया करता है, उसे ही ‘सम्प्रदान कारक’ कहते हैं, अर्थात संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिसके लिए या जिस उद्देश्य के लिए क्रिया की जाती है। इसके साथ आने वाला चिन्ह ‘सम्प्रदान कारक चिन्ह’ कहलाता है। इसका कारक चिन्ह ‘के लिए’ (को) होता है।
जैसे-
1.अध्यापक ने छात्रों के लिए पुस्तक लिखी।
2.मनुष्य पेट के लिए सब कुछ कर सकता है।
3.जीवन में अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यायाम जरूरी है।
4.मोहन ने खाने को मिठाई खरीदी।
5.अजय ने दौड़ने को जूते पहने थे।
5.अपादान कारक –
वाक्य में जी स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु की पृथकता (अलग होना) अथवा तुलना का बोध होता है, उसे ही ‘अपादान कारक’ कहते हैं, अर्थात संज्ञा या सर्वनाम कि जिस रूप से अलग या पास होने अथवा तुलना होने का बोध होता है अपादान कारक कहलाता है। इसके साथ आने वाला चिन्ह ‘अपादान कारक चिन्ह’ कहलाता है। इसका कारक चिन्ह ‘से’ होता है।
जैसे-
1.वह अभी दिल्ली से नहीं लौटा है।
2.उसकी बहन मुझसे डरती है।
3.जय सुनीता से अधिक लंबी है।
4.गांधी जी को गंदगी से नफरत थी।
5.बच्चा छत से गिर गया।
6.संबंध कारक –
वाक्य में जिस संज्ञा या सर्वनाम से किसी व्यक्ति या वस्तु या पदार्थ का दूसरे व्यक्ति या वस्तु या पदार्थ से संबंध प्रकट हो, ‘संबंध कारक’ कहते हैं। इसके साथ आने वाला चिन्ह ‘संबंध कारक चिन्ह’ कहलाता है तथा इसका कारक चिन्ह ‘का, की, के (रा, री,रे, ना, नी, ने)’ होता है।
जैसे-
1.उस नदी के किनारे बहुत अधिक वृक्ष हैं।
2.नीरज का भाई प्रथम आया है।
3.सुनीता की बेटी इस वर्ष दसवीं कक्षा में आई है।
4.रोहन के दादाजी ने मेरी किताब पढ़ी है।
5.मुझे अपने भाई के दोस्त से मिलना है।
7.अधिकरण कारक –
वाक्य में क्रिया का आधार. आश्रय या समय जिस पद से व्यक्त होता है,उसे ‘अधिकरण कारक’ कहते हैं। इसके साथ आने वाला चिन्ह ‘अधिकरण कारक चिन्ह’ कहलाता है तथा इसका कारक चिन्ह ‘में’, ‘पर’ होता है।
में-
कम से कम तीन और से घिरी हुई चीज के लिए ‘में’ का प्रयोग करते हैं।
पर-
कम से कम तीन और से खुली हुई चीज के लिए ‘पर’ का प्रयोग करते हैं।
जैसे-
1.मछलियां जल में रहती हैं।
2.बंदर पेड़ पर बैठा है।
3.शेर जंगल में रहता है।
4.चिड़िया आकाश में उड़ रही थी।
5.तुम्हारी परीक्षा मई में होगी।
शून्य अधिकरण कारक चिन्ह-
1.दीपक अगले साल घर जाएगा।
2.तुम घर-घर क्यों घूम रहे थे।
3.इस जगह पूर्ण शांति है।
4.राजीव ने कल शाम मोहन को पीटा।
7.संबोधन कारक –
संज्ञा के जिस पद से किसी को पुकारने, बुलाने, सावधान करने अथवा संबोधित करने का बोध होता है,उसे ‘संबोधन कारक’ कहते हैं। इसके साथ आने वाला चिन्ह ‘संबोधन कारक चिन्ह’ कहलाता है तथा इसका कारक चिन्ह ‘हे!’, ‘अरे!’ ‘सुनो!’ ‘अजी!’ होता है। संबोधन कारक का प्रयोग वाक्य में सबसे पहले होता है तथा इसका कारक चिन्ह कारक के पहले लगता है।
जैसे-
1.हे! भगवान! मुझे दुष्टों से बचाइए।
2.अरे! भाई! तुम अभी तक यहाँ से नहीं गए।
3.सुनो! मैं तुम्हें काफी देर से देख रहा हूँ कि तुम कुछ परेशान हो।
4.हे! प्रभु, हम सब पर दया करो
5.अरे! बच्चों, बिजली के तार से दूर रहो।