“स्वर की सहायता से बोले जाने वाले वर्णों को ‘व्यंजन’ कहते हैं।”
स्वरों के बिना व्यंजनों का उच्चारण संभव नहीं है। बिना स्वर वाले व्यंजन में हल () लगा होता है, जिसे आधा व्यंजन भी कहते हैं।
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हल () लगे व्यंजन को हलन्त तथा स्वर लगे व्यंजन को अजन्त कहते हैं।
हिन्दी व्यंजनों की संख्या 39 [ 25 स्पर्श व्यंजन, 4 अन्तःस्थ व्यंजन, 4 ऊष्म व्यंजन, 4 संयुक्त व्यंजन, 2 द्विगुण व्यंजन ।] होती है।
परंपरागत रूप से व्यंजनों की संख्या 33 (क् से ह् तक) मानी गई है।
हल () लगे व्यंजन को हलन्त तथा स्वर लगे व्यंजन को अजन्त कहते हैं।
सामान्यतः प्रत्येक व्यंजन में ‘अ’ स्वर मिला होता है। भिन्न-भिन्न स्वरों के
साथ व्यंजनों का प्रयोग निम्न प्रकार होता हैं-
क, का, कि, की, कु, कू, कृ, के, के, को, कौ, कं / कँ, कः।
प्रथम वर्ण | द्वितीय वर्ण | तृतीय वर्ण | चतुर्थ वर्ण | पंचम वर्ण | |
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‘क’ वर्ग – | क् | ख् | ग | घ् | ङ् |
‘च’ वर्ग – | च् | छ् | ज् | झ | ञ् |
‘ट’ वर्ग – | ट् | ठ् | ड् | ढ | ण् |
‘त’ वर्ग – | त् | थ् | द | ध | न् |
‘प’ वर्ग – | प् | फ् | ब | भ | म् |
अन्तःस्थ व्यंजन- | य् | र् | ल् | व् | |
ऊष्म व्यंजन- | श् | ष् | स् | ह | |
संयुक्त व्यंजन- | क्ष | त्र | श्र | ज्ञ | |
द्विगुण व्यंजन- | ड़ | ढ़ | | | |
व्यंजनों के प्रकार-
हिन्दी वर्णमाला में व्यंजन पाँच प्रकार के होते हैं- स्पर्श व्यंजन, अन्तःस्थ व्यंजन, ऊष्म व्यंजन, संयुक्त व्यंजन, द्विगुण व्यंजन।
1. स्पर्श व्यंजन (वर्गीय) जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ मुख के किसी ना किसी भाग को छूकर निकलती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।
ये 25 होते हैं-
क्, ख, ग, घ, ङ् ।
च, छ, ज, झ, ञ् ।
टू, इ, इ, इ, ण् ।
तु, थ, द, ध, न् ।
पू, फू, ब्, भू, म् ।
2.अन्तःस्थ व्यंजन- जिन व्यंजनों का उच्चारण स्वरों व व्यंजनों के बीच होता है, उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं। इन्हें अर्द्धस्वर भी कहा जाता है। ये चार होते हैं- य, र, ल, व।
अर्द्धस्वर
वर्ण | उच्चारण स्थान | वर्ग |
य् | तालु | तालव्य |
र् – लुठित वर्ण | दंतमूल/मसूढ़ा | वर्त्स्य |
ल्-पार्श्विक वर्ण | दंतमूल/मसूढ़ा | वर्त्स्य |
व् | ऊपर के दाँत निचला होठ | दंतोष्ठ्य |
3. ऊष्म/संघर्षी जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख के किसी स्थान पर रगड़ खाकर निकले तथा ऊष्मा (गर्मी) पैदा करे, उन्हें ऊष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन कहते हैं। ये चार होते हैं-
वर्ण | उच्चारण स्थान | वर्ग |
श् | तालु | तालव्य |
ष् | मूर्धा | मूर्धन्य |
स् | दंतमूल | वर्त्स्य |
ह | स्वर यंत्र (कंठ के भीतर) | स्वरयंत्रीय |
4.संयुक्त व्यंजन- जो व्यंजन दो व्यंजनों से मिलकर बना होता है, उसे संयुक्त व्यंजन कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में ये चार हैं-
क् + ष = क्ष
त् + र = त्र
ज् + ञ = ज्ञ
श् + र = श्र
उत्क्षिप्त व्यंजन – जिनके उच्चारण में जीभ पहले ऊपर उठकर मूर्धा को स्पर्श करे, और फिर झटके के साथ नीचे को आये, उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं। ‘ट’ वर्ग को ‘उत्क्षिप्त वर्ग’ भी कहते हैं। इन्हें ‘द्विगुण व्यंजन’ भी कहा जाता है।
वर्ण – ड़ / ढ़
उच्चारण स्थान- मूर्धा
वर्ग- मूर्धन्य
वर्णों का वर्गीकरण
1. घोषत्व के आधार पर घोष का अर्थ है-स्वर यंत्र में ध्वनि का कम्पन।
(क) अघोष व्यंजन- जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्र में कम्पन उत्पन्न ना हो, उन्हें अघोष व्यंजन कहते हैं। जैसे- हर वर्ग का पहला, दूसरा व्यंजन, श, ष, स। [याद रखने का तरीका (अघोष 12 शषस)]
(ख) सघोष घोष व्यंजन- जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्र में कम्पन उत्पन्न होता है, उन्हें सघोष व्यंजन कहते हैं। ये घोष व्यंजन भी कहलाते हैं। जैसे- हर वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ व्यंजन, अन्तःस्थ व्यंजन, ह। नोटः सारे स्वर सघोष वर्ण होते हैं। [ याद रखने का तरीका (घोष 345 स्वर अन्तःस्थ ह)]
2. प्राणतत्व (काकल) के आधार पर यहाँ प्राण का अर्थ हवा या सांस से है।
(क) अल्पप्राण व्यंजन- जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम हवा निकले, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं। जैसे- हर वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवाँ व्यंजन, अन्तःस्थ व्यंजन। (स्वर, अनुस्वार) [याद रखने का तरीका (अल्पप्राण 135 अन्तःस्थ)]
(ख) महाप्राण व्यंजन- जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक हवा निकले, उन्हें महाप्राण कहते हैं। जैसे- हर वर्ग का दूसरा, चौथा, ऊष्म व्यंजन। (विसर्ग) [याद रखने का तरीका (महाप्राण 24 ऊष्म)]
अयोगवाह- परपंरा के अनुसार ‘अं’ और ‘अ’ को स्वरों के साथ रखा जाता है, इनका उच्चारण व्यंजनों की भांति ‘अ’ स्वर के साथ होता है, इसलिए इन्हें स्वर से अलग माना जाता है, किन्तु ये व्यंजन के लिए उच्चारण वहन करते हैं, अतः इनमें स्वर तथा व्यंजन दोनों के गुण पाए जाते हैं, इसलिए इन्हें अयोगवाह कहा जाता है।
अयोगवाह को ‘स्वर तथा व्यंजन के बीच की कड़ी’ कहा जाता है। ‘अं’ को अनुस्वार और ‘अः’ को विसर्ग कहा जाता है।
नवनिर्मित ध्वनियाँ / विदेश से आगत ध्वनियाँ / गृहीत ध्वनियाँ
अरबी-फारसी ध्वनियाँ / आगत व्यंजन-
उर्दू भाषा के शब्दों का सही-सही उच्चारण देने के लिए कुछ व्यंजनों (क़, ख, ग, ज़, फ़) के नीचे तल बिंदु या नुक्ता ( ) का प्रयोग किया जाता है, उन्हें आगत व्यंजन कहते हैं।
जैसे- ज़िन्दगी, क़िस्मत, गज़ल, ख्वाब, ज़रा आदि।
अँग्रेजी ध्वनि / आगत स्वर-
अँग्रेजी भाषा के कुछ शब्दों का सही-सही उच्चारण देने के लिए देवनागरी में लिखते समय ‘ऑ’ (अर्द्धचाँद) का प्रयोग होता है, जिसे आगत स्वर कहते हैं।
जैसे- कॉलेज, डॉक्टर, कॉफी, डॉग आदि।
द्वित्व व्यंजन- जब किसी शब्द में किसी एक ही व्यंजन की आवृत्ति लगातार होती है, वहाँ द्वित्व व्यंजन होता है।
जैसे- दिल्ली- यहाँ ‘ल्’ वर्ण की आवृत्ति हुई है, द् इ ल् ल् ई। उच्चारण- यहाँ ‘च्’ वर्ण की आवृत्ति हुई है, उ च् च् आ र् अ ण् अ। सज्जन- यहाँ ‘ज्’ वर्ण की आवृत्ति हुई है, स् अज् ज् अन् अ।
कारान्त :- जब किसी शब्द का अंत किसी स्वर से होता है, तो उस शब्द को उस स्वर का कारान्त कहते हैं। उकारान्त जैसे- अकारान्त, आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, ओकारान्त, औकारान्त।
दीपक – अकारान्त,
क्+अ
दीपा – आकारान्त, प्+आ
राजू – ऊकारान्त, ज्+ऊ
शब्दकोश में वर्णों का स्थानः-
अं, अः, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ,
क (क्ष), ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज (ज्ञ), झ, ञ,
ट, ठ, ड (ड़), ढ (ढ़), ण, त (त्र), थ, द, ध, न,
प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श (श्र), ष, स, ह।